जगन्नाथ का अर्थ है पुरे जगद का नाथ अर्थात भगवान श्री कृष्ण या भगवान विष्णु। जगन्नाथ मंदिर उड़ीसा के पूरी में है जो कि हिन्दुओ के चारो धमो में से एक है। जगन्नाथ पूरी के मंदिर में बलभद्र(बलराम), सुभद्रा और जगन्नाथ की मुर्तियाँ बनी है जिनके हाथ पैर पूर्ण रूप से नहीं बने है। तो आज हम इसी रहस्य के पीछे छुपे पौराणिक कथा को जानेंगे और यह भी जानेंगे कि रथ यात्रा क्यों मनाई जाती है। तो चलिए शुरु करते हैं.....
मध्य भारत में एक रजा रहेते थे, उनका नाम था इन्द्रद्युम्न और वे भगवन विष्णु के बहुत बड़े भक्त थे और सदेव उनकी आराधना किया करते थे एवं उनके दर्शन के इछुक थे। एक दिन उनके महल में के ऋषि आए और उनको बोले "महाराज, उड़ीसा में भगवान विष्णु के भव्य रूप नीला माधव को पूजा जाता है लेकिन वो जगह उड़ीसा के कोंसे हिस्से में है वो आपको ढ़ुढ़ना पड़ेगा।" यह बात सुनते ही महाराज प्रसन्न हो गए और तुरंत महल के मुख्या पुजारी के भाई विद्यापति को उड़ीसा में जाकर नीला माधव कि खोज करने का आदेश दिया। जब विद्यापति उड़ीसा पहुचे तब उन्हें कुछ गुप्तचरों से पता चला कि सब्रो के मुखिया विश्वावसु एक गुप्त गुफा के अन्दर नीला माधव कि पूजा करते है। यह सुनकर विद्यापति तुरंत विश्ववासु के पास जा पहुचे और उनसे उस स्थान के विषय के बारे में जानने के लिए अनुरोध करने लगे किन्तु विश्ववासु ने साफ-साफ मन कर दिया। विद्यापति उदास होकर कुछ दिनों के लिए उसी गाँव में रहेने लगे और उन्हें विश्ववासु कि पुत्री से प्रेम हो गया और उन दोनों ने विवाह कर लिया। कुछ दिनों के बाद विद्यापति ने अपनी पत्नी नीला माधव की सिर्फ एक झलक दिखाने के लिए अपने पिता को मानाने के लिए कहा। अपनी बैटी के ज़िद के सामने विश्ववासु को झुकना पड़ा किन्तु उन्होंने एक शर्त दी कि विद्यापति के आखो में पट्टी बंधकर लिया जाएगा पर विद्यापति बड़ी चतुराई के साथ अपने साथ सरसों के डेन लेकर गए थे और गुप्त गुफा के मार्ग को यद् रखने के लिए उन्हें मार्ग में गिरते गए। गुफा में पुँछने ने के बाद जब उन्होंने पतति निकालकर नील माधव के दर्शन किए तो वो उन्हें देखते हि रहे गए।
गुफा से निकलकर वो सीधा राजा के पास पहुचे और उन्हें सब बताया, महाराज भी अपने प्यारे भगवान ले मिलने के लिये निकल परे। लेकिन गुफा में जदर महाराज को नीला मधाव के दर्शन नहि हुए, नीला मधाव अन्तर्ध्यान हो चुके थे। राजा निराश होकर लौट आए लेकिन उसी रात उन्हें सपना अय कि वोह पुरी जाए और वहाँ पानी मे तैरते एक लकड़ी के तुकरे को निकालकर उससे एक मुरति बनए। राजा ने इस अदश क पालन किया लेकिन राजा के सेवकों के लाख कोशिशों के बाद भी कोइ उस लकड़ी के तुकड़े को बाहार नहीं निकल पाया। तब उन्होंने विश्ववासु की सहायता लकड़ी को महल में लाया गया परंतु उस लकड़ी के तुकड़े से कोई नीला मधाव की चवी नही तराश प रहे थे। जब इस काम को करना मुश्किल हो गया तब देवताओं के शिल्पीकार विश्वाकर्मा बुड़े बढ़ाई के रुप में प्रकट हुए, उन्होंने राजा को भड़ोसा दिलाया कि वह मुर्ति निरमाण कर सकते हैं किन्तु कुछ शरतो पर कि वह भगवान विष्णु की मुर्ति को २१ दिनों में बनाएंगे और अकेले ही बनाएंगे लेकिन कोई भी उनके काम में बाधा न डाले, राजा ने यह सारी शरते मान ली। लोगों को सिर्फ आरी, चन्नी, हथोरी आदि इत्यादि की आवाज़ें सुनाई दे रही थी। लेकिन १५ दिनों बाद जब रानी को कोई आवाज़ सुनाई नहीं दी तो वह घबरा गए कि बुड़ा बढ़ाई भुख-प्यास से मर गया होगा इसलिए रानी ने महाराज के सामने द्वार खोलने का ज़िद किया। अखिरकार द्वार खोल गया और राजा ने देखा कि वह बुड़ा बढ़ाई गयाब हो गया हैं और अपने पिछे आधी बनी तीन मुर्तियाँ छोड़कर गया हैं।
तो आज भगवान जगन्नाथ, बहन सुभद्रा और बड़े भाई बलभद्र(बलराम) के साथ पुरी के मंदिर में पूजा जाता हैं और उनके हाथ पैर ना होने क कारण इसी कहानी को बताया जाता हैं। तो अब जानते है कि रथ यात्रा क्यों मनाई जाती है।
रथ यात्रा से जुड़ी बहुत सी कथाएँ हैं, उनमें से कुछ कथाएँ हैं। कुछ लोगों का मानना है कि सुभद्रा अपनी माइके आति है और अपने भाइयों से नगर भ्रमण करने की इच्छा व्यक्त की, तब श्री कृष्ण, सुभद्रा और बलराम रथ मे सवार होकर नगर घुमने जाते है इसी के बाद से यह रथ यात्रा का पर्व शुरु हुआ। इसके अलावा यह भी कहा जाता है कि गुंडिचा मंदिर मे श्री कृष्ण की मासी है जो तीनों को अपने घर में आने का निमंत्रण देती हैं और बलराम, सुभद्रा और श्री कृष्ण अपने मासी के घर रहने जाते हैं और ९ दिनों के बाद तीनो वापस पुरी आ जाते हैं।
बलभद्र, सुभद्रा और जगन्नाथ जी की नवीनतम तसवीरे |
जगन्नाथ मंदिर |